अपने हर लफ़्ज़् का ख़ुद आईना हो जाऊँगा...उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा...तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं...मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा...वसीम बरेलवी
तुम एक बैठी हुई चिड़िया को मार सकते हो। तुम एक उड़ती हुई चिड़िया को मार सकते हो। तुम उड़ने को तैयार एक चिड़िया को मार सकते हो। लेकिन तुम दूसरी चिड़िया में उड़ने की इच्छा को नहीं मार सकते।
परमजीत सिहँ बाली said...
बहुत बढिया!!
17 March 2008 at 1:46 pm