अपने हर लफ़्ज़् का ख़ुद आईना हो जाऊँगा...उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा...तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं...मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा...वसीम बरेलवी
मैं न अपने भविष्य में जीता हूं...न अतीत में..मैं तो बस अपने वर्तमान से मतलब रखता हूं...अगर तुम अपने वर्तमान में मन लगाकर जी सको तो तुम हमेशा सुखी रह सकते हो...अल्केमिस्ट ( उपन्यास )
0 comments:
Post a Comment