(फ़िराक साहब पर बात करने से पहले उनके कुछ शब्द)
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं
(नज़रें : eyes, glances; क़ातिल : murderer; […]
रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाए! क्या चीज़ है जवानी भी
दिल को शोलों से करती है सैलाब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी
हर्फ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़ुबानी भी
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी
(मेहमानी : to visit as a guest; […]
(हर्फ : words) (शोला : fire ball; सैलाब : flood)
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रवीन्द्र प्रभात said...
फ़िराक साहब पर आपके विचार वेहद सुंदर है !
26 September 2007 at 1:28 pm
अजित वडनेरकर said...
हमारी पसंद की चीजें थी दोनों. आभार
6 October 2007 at 8:30 pm