दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार1 नहीं हूं
बाज़ार से गुज़रा हूं, ख़रीददार नहीं हूं
ज़िन्दा हूं मगर ज़ीस्त2 की लज़्ज़त3 नहीं बाक़ी
हर चंद कि हूं होश में, होशियार नहीं हूं
इस ख़ाना-ए-हस्त4 से गुज़र जाऊंगा बेलौस5
साया हूं फ़क़्त6, नक़्श7 बेदीवार नहीं हूं
अफ़सुर्दा8 हूं इबारत9 से, दवा की नहीं हाजित10
गम़ का मुझे ये जो’फ़11 है, बीमार नहीं हूं
वो गुल12 हूं ख़िज़ां13 ने जिसे बरबाद किया है
उलझूं किसी दामन से मैं वो ख़ार14 नहीं हूं
यारब मुझे महफ़ूज़15 रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत16 का तलबगार17 नहीं हूं
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़18 की कुछ हद नहीं “अकबर”
क़ाफ़िर19 के मुक़ाबिल में भी दींदार20 नहीं हूं
...........अकबर इलाहाबादी............
1. तलबगार= इच्छुक, चाहने वाला, 2. ज़ीस्त= जीवन, 3. लज़्ज़त= स्वाद, 4. ख़ाना-ए-हस्त= अस्तित्व का घर
5. बेलौस= लांछन के बिना, 6. फ़क़्त= केवल,7. नक़्श= चिन्ह, चित्र, 8. अफ़सुर्दा= निराश, 9. इबारत= शब्द, लेख, 10. हाजित(हाजत)= आवश्यकता, 11. जो’फ़(ज़ौफ़)= कमजोरी, क्षीणता, 12. गुल= फूल, 13. ख़िज़ां= पतझड़, 14. ख़ार= कांटा, 15. महफ़ूज़= सुरक्षित, 16. इनायत= कृपा, 17. तलबगार= इच्छुक, 18. अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़= निराशा और क्षीणता, 19. क़ाफ़िर= नास्तिक, 20. दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वाला।
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